Thursday, October 8

व्यंग- चूहे भी सांप्रदायिक हो गए हैं ?

‘भगवाधारी’ मोदी जी जब से परधानमंत्री बने हैं उनकी जमात के लोगों के हौंसले बुंलद हो गए हैं। कोई पीट-पीटकर मार डाल रहा है, कोई साजिश से काट रहा है। भई, ये क्या हो रहा है इस देश में ?’ जेपी के जमाने में समाजवाद का चोला पहने नेताजी ने मंच से हुंकार भरी तो उनकी आवाज़ में चिंता कम, मसखरापन ज्यादा झलक रहा था। लग तो रहा था कि नेताजी को देश के माहौल की फिक्र है लेकिन उन्हें तो चुनावी माहौल की ज्यादा फिक्र थी। किसे बताते और कैसे बताते, वोटों का गुणा-भाग उनके गणित को बिगाड़ रहा है। माथे पर चिंता भी इसी बात की थी और वोटों की अच्छी फसल काटनी है तो नफरत के बीज तो बोने पड़ेंगे ना। नेताजी के इस बयान के बाद सियासी जमात के खादीधारियों में खलबल मच गई। श्वानशक्ति से ख़बर की जगह को सूंघकर खोजा गया। पता लगाया गया तो मालूम पड़ा कि ग्वालियर के एक अस्पताल के ट्रामा सेंटर में भर्ती मेहमूद खान को रातों-रात चूहे ने कुतर दिया है। महमूद ट्रामा सेंटर जैसी सुरक्षित जगह पर था फिर भी चूहा वहां पहुंच गया और उसने अपनी हरकत को अंजाम दिया। ख़बर अब आग की तरह फैलने लगी थी। चौबीसघंटों वालों ने ब्रेकिंग मार-मार कर इस ख़बर को अंतरराष्ट्रीय बना दिया था। सियासत के लिए उपयुक्त मंच जान नेताओं का जमघट लगने लगा। भगवाधारी, टोपीधारी और इनदोनों के बीच की सैक्यूलर कौम के नेता हाजिर हो गए। बयानों की बौछार होने लगी। बयान भी ऐसे-ऐसे की सुनकर खूनखौल जाए। टोपीधारी और सेक्यूलर दोनों एक स्वर में कह रहे थे ‘पूरे अस्पताल में इतने सारे मरीज़ मौजूद थे लेकिन चूहे ने महमूद को ही निशाना क्यों बनाया ? ये एक सोची समझी साजिश के तहत किया गया हमला है ? इसकी सीबीआई से जांच होनी चाहिए।” अस्पताल का माहौल गर्म हो गया था, बयानों की तल्खी और नेताओं के गुस्से की गर्मी से अस्पताल के एसी और पंखे भी हांफने लगे थे। बीमार और तीमारदार से मिलकर ट्रामा सेंटर से बाहर निकले टोपीधारी नेता को ख़बरनवीसों ने घेर लिया, मुंह पर लगी माइकों की भीड़ देखकर उसके चेहरे पर चमक आ गई। उसके स्वर में दिखावटी क्रोध था। वो अपनी बेचारगी जाहिर करते हुए बोला- “ इस देश में एक कौम के खिलाफ, अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश रची जा रही है। अब हम अस्पताल में भी महफूज नहीं है। देश के प्रधानमंत्री को इस पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए।” खादी की जगह पर भगवा पहनकर सियासत को साधने वाले एक भगवाधारी भी पहुंचे। उन्होंने आंखें तरेरते हुए, बांहे चढ़ाते हुए कहा- “ मूशकराज हमारे आराध्यदेव के वाहन हैं, हम उन्हें पूजते हैं। उनपर इस तरह के आरोप हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।” आग उगलने के लिए मशहूर साध्वियां भी पहुंच चुकी थीं। उनमें से एक ने कहा- “जो हमारे मुशकराज को प्रताड़ित करने की कोशिश करेगा उसकी ईंट से ईंट बजा दी जाएगी” इस मुद्दे पर टीवी पर भी बहस शुरू हो चुकी थी। टीवी के बहुविषयी पंडितों ने इस मुद्दे पर सेक्यूलर जामा ओढ़कर ज्ञान देना शुरू किया ये भारत जैसे सेक्यूलर देश के लिए ठीक नहीं है। किसी एक कौम को इस तरह से हम निशाना बनाकर दुनिया में क्या संदेश दे रहे हैं। गांधी के देश में ये स्वीकार्य नहीं हो सकता। खादीधारी बोला- ये देश की एकता और अखंडता को तोड़ने की साजिश है। ये जानबूझकर किया जा रहा है। दूसरा बोला- आपके राज में भी तो चूहों ने हिंदुओं पर हमला किया था, राजस्थान के अस्पतालों में निरीह बालक को भी कुतरा गया। तब आपकी ये एकता और अखंडता कहां गई थी। हमारे राज से ज्यादा चूहों के हमलों की घटनाएं आपके राज में हुई। बहस गर्मागरम हो रही थी। जूतमपैजार की नौबात आ गई थी। टीवी के एंकर ने अपने को बचाते हुए अपने कौशल से इस वाकयुद्ध को समाप्त कराया और ब्रेक लेते हुए राहत की सांस ली। इसी बीच टीवी पर अज्ञात विदेश दौरे से ताजे-ताजे लौटे, सियासत के नए नेवेले युवराज भी प्रकट हो गए। वे भी वहीं पहुंचे थे जहां नेताओं के पहुंचने का सिलसिला जारी था। युवराज ने इस घटना पर चिंता जताई, घटना की कड़ी निंदा की, अस्पताल में चूहों के आतंक के लिए केंद्र की सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए बोले- ‘मोदी जी अपने कार्यकाल में चूहो पर कार्रवाई करने में नाकाम रहे हैं। मोदी जी उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए सारे चूहों को सरकारी अस्पतालों, गोदामों की ओर शिफ्ट करा रहे हैं ताकि उद्योगपतियों कै माल इन चूहों से सेफ रहे” चौबीसघंटा खबरिया चैनलों पर युवराज की विदायी के साथ ही ब्रेक हुआ तो जनआंदोलन की उपज दिल्ली के सीएम का इस घटना पर एक विज्ञापन आया। “देशवासियों, चूहों से हम सबको मिलकर निपटना होगा, कुछ चूहे इस देश की फिजा में जहर घोलने की कोशिश कर रहे हैं। आदि ”

अमिताभ ! कफन में जेब नहीं होती...

उस दिन जब हमने टीवी पर विज्ञापन देखा,
जिसमें अमिताभ ने ये कहा, आईए जड़ से मिटाए पोलियो।
अगले ही विज्ञापन में अमिताभ बोला, पेप्सी पीयो।
हमने कहा यार, ये तो हद हो गई व्यावसायिकता के कहर की,
सिर्फ दो बूंदे जिंदगी की और पूरी बोतल जहर की।
अमिताभ, तुम कहते हो बोरो प्लस लगाओ, फटे होठों को सुंदर बनाओ,
टेंशन अनिद्रा का खत्म करो खेल, रोज लगाओ नवरत्न तेल।
अमिताभ, हमारे होठ नहीं सारी जिंदगी फटी है, टेशन और अनिद्रा में सारी उमर कटी है।
हमारा पेट हाजमोला का नहीं, दो रोटियों का मोहताज है और ऐवरेडी टॉर्च से जो दूर ना हो,
ऐसे घने अंधेरों का राज है।
तुम कहते हो, रंग लगाओ दिवारों को गर दिवारों से है प्यार,
अरे हमें तो यहीं नहीं पता कि दीवारों में दरारें हैं या दरारों में दीवार।
अमिताभ, हमारा दर्द कभी चुटकी में नहीं जाता है।
यहां तो बस नए दर्द के आने पर पुराना यूंही हट जाता है।
अमिताभ, तुम वाकई में जानते ना कि क्या है हमारी जरूरत।
तो हम भी कभी नहीं करते ये सब लिखने की जुर्रत लेकिन ये जुर्रत हमने की है
क्योंकि जब-जब इस देश पर मुसीबतों ने अपना कहर बरपाया है,
दानदाताओं की सूची में तुम्हारा नाम कहीं नज़र नहीं आया है।
ना ही पिताजी की याद में तुमने कोई अस्पताल खोला है।
तुमने तो सिर्फ और सिर्फ मधुशाला की पंक्तियों को महफिलों में बोला है।
अमिताभ हम जानते हैं, तेरे पास बंगला है, गाड़ी है, हीरे हैं, मोती हैं
पर याद रख, कफन में जेब नहीं होती है, कफन में जेब नहीं होती है।

सुनील राउत