भूलकर सारी पीड़ा को, हिलोरे ले रहा हो मन
पंख मन को लगे हो जब, जमीं पर ना रहे चरण
गीत मन में गूंजने बस लगे, जब आया हो फागुन
मिलन को बावरा साजन, समझ लेना कि होली है।
टेसू के फूलों से, जब महकता हो चमन
वसन हो जाएं रंगीं, चेहरे पर हो रंग-रोगन
कभी खोलो हुलसकर आप घर का दरवाज़ा
खड़ें देहरी पे हो साजन, समझ लेना कि होली है।
खड़ें देहरी पे हो साजन, समझ लेना कि होली है।
बीना तन भांग के नाचें, करें जब पांव खुद नर्तन
भूलकर सारी कश्मकश, लगे बीवी वहीं नूतन
तरसती हो जिनके दीदार को आपकी आँखें
उसे छूने का आए क्षण, समझ लेना कि होली है।
नैनों को बिछाएं जब राह तकती मिले समधन
पचासी पार बूढ़ों को याद आ जाए लड़कपन
किसे पकडूं, किसे छोड़ूं जब मन में हो ये उलझन
गीत गाने लगे धड़कन, समझ लेना कि होली है।
भले हो महंगाई, जोरों से करती रहे गर्जन
फिर भी दिखें रंगों से सराबोर हर तन-मन
हमारी ज़िन्दगी यूं तो हैं काटोंभरा जंगल
अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है।
सुनील राऊत
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