वो पूछता है जाति, धरम बोलता है
ये अख़बार अम्न में ज़हर घोलता है
बच सकों तो बचों ख़बरों के सौदागर से
ये सिक्कों के भार से लाशें तौलता है
धर्म से हिंदू होना क्या ख़ता है हमारी
ये सियासत देखकर ख़ून ख़ौलता है
कुछ इज़ाफ़ा हो गया है मेरी अक़्ल में
मैं जानता हूं दरबार में सच डोलता है
मत भूल कि उसी के हाथ है तेरी ताक़त
वो आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है
सुनील राऊत
ये अख़बार अम्न में ज़हर घोलता है
बच सकों तो बचों ख़बरों के सौदागर से
ये सिक्कों के भार से लाशें तौलता है
धर्म से हिंदू होना क्या ख़ता है हमारी
ये सियासत देखकर ख़ून ख़ौलता है
कुछ इज़ाफ़ा हो गया है मेरी अक़्ल में
मैं जानता हूं दरबार में सच डोलता है
मत भूल कि उसी के हाथ है तेरी ताक़त
वो आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है
सुनील राऊत
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