Tuesday, March 29

मेरी आंखें अब उजाले से कतराती, डरती हैं


बनाकर तकिया हाथ का फुटपाथ पे सोया था
जो कल तक गणतंत्र के उल्लास में खोया था
मेरी आंखें अब उजाले से डरती, कतराती हैं
इन्हीं आंखों में मैंने कल का खाब पिरोया था
                 सुनील

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