Friday, February 5

अभी मत पिलाओ मुझे होश में आना है


अभी मत पिलाओ मुझे होश में आना है
बेसुध इस ज़माने को होश में लाना है

ऐ चांद तू सैय्यारे के सिवा है क्या
तारीफ़ के लिए ज़मीं पे ही आना है

इक दिन चांद पे जाकर तू इतराता है
हमारा तो वहां रोज़ का आना-जाना है

यहां तो सब होश में आ रहे हैं नज़र
लानत है, ये क्या ख़ाक मयखाना है

करने रोशन दिए जलाए मैंने ये जहां 
ये सच नहीं है, झूठा ताना-बाना है

अंगुली काट शहीदों में नाम लिखा आए
बेगैरती का ये बड़ा अच्छा अफ़साना है

'सुनील' तुम बड़े अच्छे शायर हो यार
ये मेरी तारीफ है या कसा हुआ ताना है  

                  सुनील राऊत

Thursday, February 4

कहीं ठिकाना नहीं मिला तो पत्रकार हुए

जब से तुम से नैना मिले चार हुए
खुदा क़सम उसी पल से बेकार हुए

दूसरों की ख़बर लेने की लगी बुरी लत
कहीं ठिकाना नहीं मिला तो पत्रकार हुए

ज़माने के हक़ में आवाज़ बुलंद करते रहे
तीमारदारी करते-करते ख़ुद बीमार हुए

हमारी वफ़ा का मिला है हमको ये सिला
लोग अब कहते हैं हमको, ये बाज़ार हुए

नामंजूर नहीं, ये बात कुछ हद तक सच है
झुक गए जो अना की जंग में, सरकार हुए

                                       सुनील राऊत

Monday, February 1

मुझको अब तू हरबार चाहिए


वफ़ा के लिए वफ़ादार चाहिए
मुझको अब तू हरबार चाहिए

कनारे कश्ती आ ही जाएगी
नर्गिस में वो इंतज़ार चाहिए

जिंदगी का सौदा कर आया हूं
ऐ मौत तेरा इकरार चाहिए

यूं ही शोहरत हासिल नहीं होती
ज़माने में दुश्मन बे-शुमार चाहिए

आसमां से आ जाएगा माहताब
दिल मिलने को बे-करार चाहिए

              सुनील राऊत

सलीका-ए-जिंदगी नहीं मिलती गूगल पर

धरती-अंबर, चांद-सितारें, आफ़ताब गूगल पर
तलाश में सुबह होती, शाम ढलती गूगल पर

ख़ाब सजाएं हैं तो पूरा करने की ठान ले
नींदों की आरज़ू नहीं चलती गूगल पर

क़िताबें ज़माने की मिल जाएगी तुमको
सलीका-ए-जिंदगी नहीं मिलती गूगल पर

इम्तहाने-ज़ीस्त में गर नाकाम हो गए
तो डाल नहीं पाओगे ग़लती गूगल पर

वक़्त मिला है तो बिता लो बुज़ुर्गों के साथ
ढूंढने से हर चीज़ नहीं मिलती गूगल पर

                               सुनील राऊत