Thursday, October 8

अमिताभ ! कफन में जेब नहीं होती...

उस दिन जब हमने टीवी पर विज्ञापन देखा,
जिसमें अमिताभ ने ये कहा, आईए जड़ से मिटाए पोलियो।
अगले ही विज्ञापन में अमिताभ बोला, पेप्सी पीयो।
हमने कहा यार, ये तो हद हो गई व्यावसायिकता के कहर की,
सिर्फ दो बूंदे जिंदगी की और पूरी बोतल जहर की।
अमिताभ, तुम कहते हो बोरो प्लस लगाओ, फटे होठों को सुंदर बनाओ,
टेंशन अनिद्रा का खत्म करो खेल, रोज लगाओ नवरत्न तेल।
अमिताभ, हमारे होठ नहीं सारी जिंदगी फटी है, टेशन और अनिद्रा में सारी उमर कटी है।
हमारा पेट हाजमोला का नहीं, दो रोटियों का मोहताज है और ऐवरेडी टॉर्च से जो दूर ना हो,
ऐसे घने अंधेरों का राज है।
तुम कहते हो, रंग लगाओ दिवारों को गर दिवारों से है प्यार,
अरे हमें तो यहीं नहीं पता कि दीवारों में दरारें हैं या दरारों में दीवार।
अमिताभ, हमारा दर्द कभी चुटकी में नहीं जाता है।
यहां तो बस नए दर्द के आने पर पुराना यूंही हट जाता है।
अमिताभ, तुम वाकई में जानते ना कि क्या है हमारी जरूरत।
तो हम भी कभी नहीं करते ये सब लिखने की जुर्रत लेकिन ये जुर्रत हमने की है
क्योंकि जब-जब इस देश पर मुसीबतों ने अपना कहर बरपाया है,
दानदाताओं की सूची में तुम्हारा नाम कहीं नज़र नहीं आया है।
ना ही पिताजी की याद में तुमने कोई अस्पताल खोला है।
तुमने तो सिर्फ और सिर्फ मधुशाला की पंक्तियों को महफिलों में बोला है।
अमिताभ हम जानते हैं, तेरे पास बंगला है, गाड़ी है, हीरे हैं, मोती हैं
पर याद रख, कफन में जेब नहीं होती है, कफन में जेब नहीं होती है।

सुनील राउत

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