Friday, January 15

व्यापम पर लिखा एक व्यंग...

इन दिनों हर ओर वातावरण में एक ही शब्द गूंज रहा है व्यापम, टीवी ऑन करो तो व्यापम, अखबार खोलो तो व्यापम, पत्र-पत्रिकाओं में व्यापम यहां तक कि नेताओं की जुबान से लेकर जनता के जेहन तक व्यापम ही व्यापम। और सबकी एक ही मांग गुनहगारों को सज़ा दो। सीबीआई से राज़-फाश करवाओ। ये सारे चरित्र मिलकर व्यापम को ऐसा और इतना बदनाम कर रहे हैं जैसे व्यापम गांव की भौजाई हो जिसको छेड़ने का, मज़ाक करने का सबको आधिकार प्राप्त हो। अब इन सब ने मिलकर पहले से कइयों के पीछे लगी सीबीआई को व्यापम के भी पीछे लगवा दिया है। पिछले दो साल से शिवराज और उनकी सरकार ढीठ बनकर बचा रही थी व्यापम को सीबीआई से। लेकिन जब उनकी ही पार्टी के उनके सियासी सहोदर, साथी और पुराने मित्र व्यापम के जुबानी दुश्मन बन गए तो शिवराज की रातों की नींद गायब हो गई। सपने में उन्हें ईमानदारी की देवी ने दर्शन दिए और नैतिकता के देवता ने सलाह कि सीबीआई आ रही है तो आने दो तुम्हारे पीछे थोड़े ही आ रही है।

शिवराज ने सुबह उठते ही पहला काम ये किया कि सीबीआई को न्यौता दे दिया, सीबीआई भी कोई खाली-पीली तोते का नाम तो है नहीं, जो जिसने बुलाया चला आया, सैकड़ों केसों की पड़ताल में उलझा पिंजरे में बंद ये तोता आका के बिना हुक्म के तो पर भी नहीं मारता। वैसे तोते के आका भी चाहते थे कि व्यापम के पीछे सीबीआई लगा ही दी जाए पर मजबूर थे बेचारे लेकिन आका की मजबूरी पर मजबूती का सिक्का सुप्रीम कोर्ट ने जड़ दिया। दोपहर तक कोर्ट ने फैसला दिया कि सीबीआई को व्यापम के पीछे छोड़ दो। फिर क्या मीडिया में अपने ऊपर उड़ते कीचड़ को सफा करने के लिए इधर-उधर मीडिया के आगे-आगे, पीछे-पीछे भाग चुके, जवाब दे-देकर थक चुके शिवराज ने भी राहत की सांस ली और बोले अब मैं रिलैक्स फील कर रहा हूं लेकिन ये जब रिलैक्स फील कर रहे थे तब कइयों की सांसें फूल रही थीं, क्या पता इनकी भी फूल रही हो! खैर जिनकी सांसें फूल रही थी उनकी किसी को फिक्र नहीं थी।

अरे भाई उनके बारे में भी तो कोई सोचो जिनके लिए व्यापम अनुपम है, जिनको व्यापम ने गढ़ा है, विशाल बनाया है, इतना बड़ा कि वो सीधे साइकिल से मर्सडीज़ तक पहुंच गए, गुरुजी से गुरू हो गए, गली में जिनको कुत्ता नहीं पूछता था वो सूबे के माफिया बन गए। जो कुछ बनने लायक भी नहीं था व्यापम ने उसे भी बना दिया। उन मंत्रियों के बारे में कोई नहीं सोच रहा है जिनके चुनाव का खर्चा है व्यापम, उन मंत्राणियों के बारे में भी नहीं जिसके घर का साज है व्यापम। सोफे के कवर से लेकर घर के ब्लोअर तक का। राजभवन की भव्य प्राचीरों के बीच बैठे राज्यपाल की चिंता कोई तो करो भाई जो अपने राजनीतिक जीवन के संध्याकाल में असहनीय आरोप, अपूरणीय आघात और अनंत अपराधबोध से पीड़ित हैं, जिन्होंने हाल ही में अपने नौजवान बेटे को खोया है। इनकी नहीं तो कम से कम व्यापम के उन अधिकारियों का तो सोच ही लेते जिन्होंने प्रदेश तक सीमित व्यापम को दुनिया में चर्चित बना दिया। अरे इन अधिकारियों ने प्रदेश के जो नालायक बच्चे थे उनको लायक जो बनाया है इस नाते तो थोड़ा रहम खाते। व्यापम के उन कर्मचारियों का अब क्या होगा जो व्यापम की इस कमाई से बीवी को खुश रखते थे, रोज फिल्म दिखाते थे, बाहर खाना खिलाते थे। बच्चों को महंगी गाड़ियों में सैर कराते ।अब क्या जवाब देंगे वे अपने परिवार को। क्या बतायेंगे कि क्यों वो अब बाहर नहीं ले जाते, क्यों फिल्म नहीं दिखाते ? इन लोगों के बारे में कोई नहीं सोच रहा हैं। इनको छोड़ो, साजिश और कूटरचना के मामले में आगाथा क्रिस्टी के उपन्यास के निर्जीव पात्रों को मात देने वाले उन सजीव पात्रों के बारे में तो सोचना बनता ही था न जिन्होंने इतनी चतुराई और चालाकी से 45 से ज्यादा लोगों को रास्ते से हटा दिया और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं होने दी। सर्वव्याप्त व्यापम कथा के ये वो महान पात्र हैं जिन्होंने इन 45 आत्माओं को अपने प्रारब्ध से मिलाया, गौर साहब की ‘जो आया है वो जाएगा’ वाली थ्योरी को साबित कर चित्रगुप्त की मदद की है इन्होंने।

मुझे तो फिक्र उनकी हो रही है जो व्यापम पर भगवान से ज्यादा भरोसा करते थे। मंदिर मानते थे ये व्यापम की भव्य इमारत को और वहां के आकाओं को भगवान। वे आश्वस्त थे कि अगली परीक्षा में उनकी पीएमटी, पीईटी की सीट पक्की है, कुछ को अपनी नौकरी का भी सौ फीसद भरोसा था।  इस आस में उन्होंने पढ़ना-लिखना छोड़ कर माल जुटाना शुरू कर दिया था, सारे लिंक भिड़ा लिए तब जाकर इन देवदूतों के दर्शन हुए थे। उनपर क्या बीत रही होगी ?

कॉलेजों के प्रोफेसरों के बारे में कोई नहीं सोच रहा जिन्होंने बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते उन्हें सेट किया और थोड़े पैसे और जोखिम लेकर सेट भी करा दिया। व्यापम ने प्रदेश के कई नालायकों को लायक बनाया, कोई नापतौल विभाग का अफसर बन अपने जीवन का नाप-तौल सही कर रहा है तो कोई पुलिस की खाकी पहनकर अपनी जेब से न्याय कर रहा है और जो शिक्षक बने हैं वे नई पीढ़ी को जिसतरह की शिक्षा दे रहे होंगे उससे व्यापम आने वाले वक्त में और व्यापक होने के पूरे आसार है।

व्यापम से निकले डॉक्टर वो तो प्रदेश की बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था को तंदुरुस्त बना ही देंगे क्योंकि खुद की सेहत बनाने में वे तो जुट ही चुके हैं। उन डीन, डॉक्टर्स, दलाल, साल्वर प्रजाति के लोगों के बारे में किसी ने नहीं सोचा जो थोड़े से पैसे में इतना बड़ा रिस्क लेकर व्यापम को सर्वव्याप्त बना रहे थे। अरे ये न होते तो कौन जानता व्यापम को? भोपाल शहर के पॉश इलाके का एक बेनाम पता बनकर रह जाता। लेकिन जिन्होंने इसे इतनी ऊंचाई पर पहुंचाया उन्हें ही अब ‘ऊपर’ पहुंचाने की तैयारी हो रही है। हालांकि इन सब के लिए राहत की बात ये है कि व्यापम के पीछे सीबीआई को छोड़ा गया है जिसका रिकॉर्ड इनके हिसाब से तो बेहतरीन है। एक-एक केस को सुलझाने में पचासों साल लगा देते हैं यहां के काबिल अफसर। ये इसलिए भी चिंतित नहीं है क्योंकि ये जानते हैं जिस एजेंसी को इनके पीछे छोड़ा गया है उनमें एसीपी प्रद्युम्न, दया और अभीजीत जैसे काबिल सीआईडी अफसर नहीं है, और ना ही चाचा चौधरी का कोई वशंज।

एनआरएचएम घोटाला याद है न, यूपी का। उसमें भी तो ऐसे ही कइयों को निपटा दिया गया था उनके पीछे भी तो सीबीआई छोड़ी गई है। क्या हुआ ? कुछ नहीं। इनको भी लग रहा है जब तक सीबीआई कुछ खोजेगी तक तक तो ईश्वर का बुलावा आ ही जाएगा और कुछ वेटिंग में होंगे. अंतिम समय में, लाचार, बीमार। तो अदालत भी रहम खाकर जमानत दे ही देगी लेकिन हां इस उधेड़बुन और व्यापम की पोल खोल में सबसे बड़ा नुकसान किसी का हुआ है तो वे नाकारा और नाकाबिल नौजवानों की उस एक पीढ़ी का जिनका भविष्य इस व्यापम की वजह से संवर सकता था क्योंकि जिनके पास टैलेंट होता है और जो पढ़ने लिखने वाले होते हैं वो तो कही न कही तो चिपक ही जाते हैं। बाकी सियासत तो वैसे ही चलती रहेगी क्योंकि सियासतदानों से बड़ा कोई है क्या? ये पत्रकार वत्रकार क्या चीज है यार।
   
                                                                                                                         सुनील राऊत

ग्राम सृजन फाउंडेशन थीम सॉंग



चलो गांव चलें(2)
एक-दूसरे की छांव बनें।।

शिक्षा की हम अलख जगाएं
समरसता के दीप जलाएं
वंचित-शोषित की नाव बनें।।
चलो गांव चलें...

स्वावलंबन ही मंत्र एक हो
युवा क्रांति की राह नेक हो
नवसृजन के लिए दांव बनें।।
चलो गांव चलें...

नारी सशक्तिकरण ध्येय हो
वृद्धों के लिए मन में स्नेह हो
दिव्यांगों(विकलांगों) के हाथ-पांव बनें।।
चलो गांव चलें...
एक-दूसरे की छांव बनें।।
             सुनील राऊत