Tuesday, January 19

एक शिक्षक को समर्पित...


दर्द को अल्फाज़ बनाता हूं 
सपनों को परवाज़ बनाता हूं
ख्वाबों की नुमाइश में नहीं है मेरा यकीन
मैं सपने सहेजने के लिए दराज़ बनाता हूं

रात को दिन, दिन को रात बनाता हूं
अरमानों की स्याही से कायनात बनाता हूं
तकने वाले तकते रहे हाथ की लकीरों को
मैं आने वाले कल को आज बनाता हूं 

रुआसे चेहरों पर हंसी लाता हूं
खेल-खेल में संसार दिखाता हूं  
सबकी शिकायतें रखता हूं सर-आंखों पर
तब ज़माना बदलने के लिए आवाज़ बनाता हूं

चूने की चॉक से आकाश लिखता हूं
अंधेरों को रौशन करता प्रकाश लिखता हूं
ज़माना बनाए हेलिकॉप्टर, हवाई जहाज़
मैं नौसिखिए परिंदों को बाज़ बनाता हूं

दुनिया देखने के लिए सैर कहां ज़रूरी है ?
मैं किताबों के कोनों में दुनिया दिखाता हूं
मत करो किताबों में मज़हब खोजने की कोशिश
मैं किताबों से आरती-नमाज़ बनाता हूं
                        सुनील राउत         

1 comment:

  1. और मुझे ये बहुत अच्छी लगी :)

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