Thursday, January 28

ज्य़ादा फ़र्क नहीं है सियासत और मुहब्बत में...



ज्य़ादा फ़र्क नहीं है सियासत और मुहब्बत में
दोनों ही पनपती है अरमानों के जज्बात में 

आशिक से पूछो या सियासतदां से सुन लो
वहीं उलझन, बेरूखी होती है सवालात में

मज़ा किरकिरा कर दिया उसने पड़ोसी बनकर
अब वो बात नहीं बची, उससे मुलाक़ात में

अब आदत सी हो गई है पांव को नश्तरों की
दर्द भी कहीं गुम हो गया है अहसासात में

झूठ को सच और सच को झूठ बनाता है
उसका कोई सानी नहीं है ऐसी करामात में

वो नेता है, गिरगिट की तरह रंग बदलता है
उसकी गिनती होती है इलाके के बदज़ात में
            
                सुनील राऊत

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