Thursday, February 4

कहीं ठिकाना नहीं मिला तो पत्रकार हुए

जब से तुम से नैना मिले चार हुए
खुदा क़सम उसी पल से बेकार हुए

दूसरों की ख़बर लेने की लगी बुरी लत
कहीं ठिकाना नहीं मिला तो पत्रकार हुए

ज़माने के हक़ में आवाज़ बुलंद करते रहे
तीमारदारी करते-करते ख़ुद बीमार हुए

हमारी वफ़ा का मिला है हमको ये सिला
लोग अब कहते हैं हमको, ये बाज़ार हुए

नामंजूर नहीं, ये बात कुछ हद तक सच है
झुक गए जो अना की जंग में, सरकार हुए

                                       सुनील राऊत

1 comment: