धरती-अंबर, चांद-सितारें, आफ़ताब गूगल पर
तलाश में सुबह होती, शाम ढलती गूगल पर
ख़ाब सजाएं हैं तो पूरा करने की ठान ले
नींदों की आरज़ू नहीं चलती गूगल पर
क़िताबें ज़माने की मिल जाएगी तुमको
सलीका-ए-जिंदगी नहीं मिलती गूगल पर
इम्तहाने-ज़ीस्त में गर नाकाम हो गए
तो डाल नहीं पाओगे ग़लती गूगल पर
वक़्त मिला है तो बिता लो बुज़ुर्गों के साथ
ढूंढने से हर चीज़ नहीं मिलती गूगल पर
सुनील राऊत
तलाश में सुबह होती, शाम ढलती गूगल पर
ख़ाब सजाएं हैं तो पूरा करने की ठान ले
नींदों की आरज़ू नहीं चलती गूगल पर
क़िताबें ज़माने की मिल जाएगी तुमको
सलीका-ए-जिंदगी नहीं मिलती गूगल पर
इम्तहाने-ज़ीस्त में गर नाकाम हो गए
तो डाल नहीं पाओगे ग़लती गूगल पर
वक़्त मिला है तो बिता लो बुज़ुर्गों के साथ
ढूंढने से हर चीज़ नहीं मिलती गूगल पर
सुनील राऊत
No comments:
Post a Comment