बाबूजी...
जिनके सुर में सागर की गहराई
तान हृदय के पार उतरती
शब्द-शब्द संगीत हैं जिनके
वाणी पर विणापानी
नस-नस में नाद् है बहता
श्वास सुर से चलती
चलना भी एक ताल हो जिनका
नतमस्तक हो ज्ञानी
अधरों पर मुस्कान मनोहर
मुख पर संतोष की आभा
मन कोमल, तन से सबल
हर पग हितकरणी
ऊसर को उर्वरा बना दे
जड़ हो जाए चेतन
कष्टों को आनंद में बदले
ऐसी अलौकिक तरणी
जिनके सुर संतों को प्यारे
गुरु भी जिनके आगे हारे
जब वे अदभुत तान छेड़ दे
निद्रा भुले यामिनी
एक ध्येय संगीत की सेवा
चाहा न कभी जीवन से मेवा
जीवन ओरों के सुख में लगाए
ऐसे थे वे दानी
धन्य हो गई एक पीढ़ी
धन्य हो गया गांव
रौशन हुआ कुल का भी नाम
सदा रहेंगे मुकुटमणी
बाबूजी सदा रहेंगे मुकुटमणी...
सुनील राऊत
जिनके सुर में सागर की गहराई
तान हृदय के पार उतरती
शब्द-शब्द संगीत हैं जिनके
वाणी पर विणापानी
नस-नस में नाद् है बहता
श्वास सुर से चलती
चलना भी एक ताल हो जिनका
नतमस्तक हो ज्ञानी
अधरों पर मुस्कान मनोहर
मुख पर संतोष की आभा
मन कोमल, तन से सबल
हर पग हितकरणी
ऊसर को उर्वरा बना दे
जड़ हो जाए चेतन
कष्टों को आनंद में बदले
ऐसी अलौकिक तरणी
जिनके सुर संतों को प्यारे
गुरु भी जिनके आगे हारे
जब वे अदभुत तान छेड़ दे
निद्रा भुले यामिनी
एक ध्येय संगीत की सेवा
चाहा न कभी जीवन से मेवा
जीवन ओरों के सुख में लगाए
ऐसे थे वे दानी
धन्य हो गई एक पीढ़ी
धन्य हो गया गांव
रौशन हुआ कुल का भी नाम
सदा रहेंगे मुकुटमणी
बाबूजी सदा रहेंगे मुकुटमणी...
सुनील राऊत
No comments:
Post a Comment