साथ चलो, राहें बनेगी मिलेंगी मंजिलें
ख़ुदी के वास्ते क़दम उठाकर तो देखो
कांटों के ठिकानों, इरादों से वाक़िफ़ हूं बख़ूबी
कांटों के ठिकानों, इरादों से वाक़िफ़ हूं बख़ूबी
नंगे पांव चलने वालों के तजुर्बे पढ़े हैं मैंने
हाथों की लकीरों में मशरूफ़ रहने वालो
बिना हाथ क़ामयाबी लिखने वालों से भी तो मिलो
मिलो उनसे, जो चले हैं मीलो मिलकर मयखाने की तलाश में
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर की बंटी राहों को क्यों तलाशें
तलाशों उनको, जिन्हें हो तलाश तुम्हारी
अपनी तलाश में भी कभी निकलकर देखो
देखो उन्हें जिनकी दिखाई राहों से हमने ज़माने देखे
देखा-देखी को हुनर मानने वालों से भी तो मिलो
साथ चलो, राहें बनेगी मिलेंगी मंजीलें
ख़ुदी के वास्ते क़दम उठाकर तो देखो
.... सुनील राऊत
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