Wednesday, January 6

बेवजह दिल आज भारी है...

बेवजह दिल आज भारी है
ज़िन्दगी से जंग जारी है 

कलम कांप रही है हाल-ए-दौर लिखने में
हर हाथ तलवार, कटारी है 

ज़हर भरा है ज़ेहन-ज़ेहन में
कांटों की बगिया में फूलों की क्यारी है

मज़हबी ताप से कसुम कुम्हलाए
प्रेम की गर्दन, नफरत की आरी है

भूखा वनमृग दौड़ रहा है 
ताक में बैठा शिकारी है

अनभिज्ञ हिरण को क्या मालूम 
आज करनी मृत्यू की सवारी है
बहन-बेटियां लुट रही है 
हर्षित मदमस्त व्यभिचारी हैं

मात-पिता रुदन कर रहे
हुए कठोर बनवारी हैं

रावण यहां आज भी पूजनीय 
सीता, अहिल्या दण्ड की अधिकारी हैं

काम की बच्चे मांगते हैं घूस
अब हर घर लगे कचहरी है

मां भी लगने लगी बेगानी
बेटा हो गया शहरी है

धीरे-धीरे रिश्तों की कतरन  
लगने लगी अब गठरी है

पापा डैडी, मां हैं मम्मी 
दादा,दादी बीमारी है

इतिहास हो गए हैं सुदामा
व्यापार बन गई यारी है


बेवजह दिल आज भारी है
ज़िन्दगी से जंग जारी है
              ...सुनील राऊत

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